वक़्त नज़दीक़ था आख़िरी रात थी
ज़ख्मी ज़हरा ने फ़िज़्ज़ा को आवाज़ दी
आईं फ़िज़्ज़ा तो ज़हरा ने रो कर कहा
अब तुम्हारे हवाले है ये घर मेरा
तुमको मालूम है मेरा हाल ऐ बहन
मेरे बच्चों का रखना ख़्याल ऐ बहन
ये फ़िज़्ज़ा पुकारीं, बताएं ये बीबी ?
कमी कैसे मां की मैं पूरी करूंगी
मां…. मां होती है ×2
ऐ फ़िज़्ज़ा!
(वो देखते हैं तुमको तो मिलता है उनको चैन
अम्मा पुकारते हैं तुम्हें भी हसन-हुसैन)
मैं भूली नहीं आपका घर चलाना
वो इक वक़्त में दो फ़रीज़े निभाना
वो चक्की चलाना वो झूला झूलाना
कभी आपके बिन ना गुज़रा कोई दिन
मुझे अम्मां फ़िज़्ज़ा वो कहते हैं लेकिन
मां…. मां होती है ×
ऐ फ़िज़्ज़ा!
(आदत है लोरियों की मेरे दिल के चैन को
लोरी सुना के तुम भी सुलाना हुसैन को)
वो गोदी में लेकर उसे प्यार करना
वो कहना मेरे लाल सो जा हुसैना
वो आवाज़ सुनते ही बेटे का सोना
मैं जब उसको लोरी सुनाऊंगी बीबी
कहां से वो आवाज़ लाऊंगी बीबी
मां…. मां होती है ×2
ऐ फ़िज़्ज़ा!
(लगती बहुत है प्यास मेरे नूरे एंन को
उठ उठ के शब में पानी पिलाना हुसैन को)
हो प्यासा तो पानी पिलादूंगी बीबी
मैं खाना भी उसको खिलादूंगी बीबी
सवेरे मैं चेहरा धुला दूंगी बीबी
गले से लगाऊं, वो रुठे मनाऊं
मगर मां की खुशबू कहां से मैं लाऊं
मां…. मां होती है×2
ऐ फ़िज़्ज़ा!
(ज़ालिम ने दर गिरा के मेरी गोद उजाड़ कर
इक नस्ल खत्म की मेरे मोहसिन को मार कर)
ऐ बीबी वो दर जब उठाया था मैंने
शिकस्ता है पहलू ये देखा था मैंने
वो जब आपसे हाल पूछा था मैंने
ना ग़म पसलियों का न पहलू का सदमा
थी ये फ़िक्र मोहसिन ना मर जाए मेरा
मां…. मां होती है×2
ऐ फ़िज़्ज़ा!
(ज़ालिम ने दर गिरा के मेरी गोद उजाड़ कर
इक नस्ल खत्म की मेरे मोहसिन को मार कर)
ऐ बीबी वो दर जब उठाया था मैंने
शिकस्ता है पहलू ये देखा था मैंने
वो जब आपसे हाल पूछा था मैंने
ना ग़म पसलियों का न पहलू का सदमा
थी ये फ़िक्र मोहसिन ना मर जाए मेरा
मां…. मां होती है×2
ऐ फ़िज़्ज़ा!
(जब भी हसन के सामने जाती है फ़ातिमा
हाथों से अपने गाल छुपाती है फ़ातिमा)
कहा रो के फ़िज़्ज़ा ने ऐ शाहज़ादी
वो चुप चुप के रोता है ग़ुर्बत पे मां की
निशा उंगलियों के हैं चेहरे पे अब भी
जनाजे़ पे आके वो चेहरा जो देखे
मैं उस वक़्त उसको संभालूंगी कैसे
मां…. मां होती है×2
ऐ फ़िज़्ज़ा!
(बेपर्दा लाई जाएंगी बाज़ार बेटियां
मेरी तरहां से जाएंगी दरबार बेटियां)
उन्हें शामियों से बचा लूंगी बीबी
मैं हाथों को चादर बना लूंगी बीबी
उन्हें अपने पीछे छुपा लूंगी बीबी
खुले सर वो हाय! जो दरबार जाएं
चली आइएगा जो जै़नब बुलाए
मां…. मां होती है×2
(तस्वीह कर रही थी जो आवाज़ खो गई
थक कर ग़मों से फ़ातिमा खामोश हो गई)
जनाजे़ पे ज़हरा के देखा ये मंज़र
कहा जब ये शब्बीर ने मां से रो कर
ऐ अम्मां बोला बुला लो है बेचैन दिलबर
ये सुनकर कफ़न से उठे हाथ मां के
ये फ़िज़्ज़ा ने देखा तो बोलीं अली से
मां…. मां होती है×2
रज़ा और ज़ीशान कैसा समा था
वो जब शिम्र ने शह पे खंजर चलाया
पहुंच कर ये मक़तल में फ़िज़्ज़ा ने देखा
पिसर के सिरहाने कहा फ़ातिमा ने
लहद छोड़ आई हूं तुझको बचाने
मां…. मां होती है×2
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